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कबीर क्षमा समान न तप ,सुख नहीं संतोष समान। तृष्णा समान नहीं व्याधि कोई, धर्म न दया समान।। अधिक जानकारी हेतु अवश्य पढ़े पुस्तक ज्ञान गंगा
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#सत् भक्ति संदेश ज्ञान गंगा पढ़ने के बाद हमें ज्ञान होता है हम कौन हैं, कहां से आए हैं और हमें मनुष्य जीवन क्यों प्राप्त हुआ है।
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गरीब, माया का रस पीय कर, फूट गये दो नैन। ऐसा सतगुरु हम मिल्या, बास दिया सुख चैन।। रावण ने सोने की लंका बनाई हुई थी। इतनी माया जोड़ी फिर भी उसका अंत कैसा दर्दनाक हुआ। वर्तमानं में भी सब माया संग्रह करने में लगे हैं। मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य परमात्मा का भजन भक्ति करके जीव कल्याण कराना था।
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