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गरीब, माया का रस पीय कर, फूट गये दो नैन। ऐसा सतगुरु हम मिल्या, बास दिया सुख चैन।। रावण ने सोने की लंका बनाई हुई थी। इतनी माया जोड़ी फिर भी उसका अंत कैसा दर्दनाक हुआ। वर्तमानं में भी सब माया संग्रह करने में लगे हैं। मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य परमात्मा का भजन भक्ति करके जीव कल्याण कराना था।
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#सत_भक्ति_संदेश सतगुरु मिले तो इच्छा मेटै, पद मिल पदे समाना। चल हंसा उस लोक पठाऊँ, जो आदि अमर अस्थाना।। इच्छा को केवल सतगुरु अथार्त् तत्वदर्शी संत ही समाप्त कर सकता है तथा यथार्थ भक्ति मार्ग पर लगा कर अमर पद अथार्त् पूर्ण मोक्ष प्राप्त कराता है।
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